EARC શું છે
शिक्षण क्या और कैसे - ईआरएसी [ERAC]
શિક્ષકને ચાર વાતો ખબર હોવી જોઈએ :
શું કરવાનું છે ?
શા માટે કરવાનું છે ?
હું મારી રીતે કેવી રીતે કરી શકીશ ?
શું હું તેને સારી રીતે કરી રહ્યો છુ
પ્રવૃત્તિ નું ફોર્મેટ :
E – experience – અનુભવ-ચુનૌતી
R – reflection – ચિંતન
A – application – અનુપ્રયોગ
C – consolidation – સંયોગીકરણ – સંકલન
शिक्षण क्या और कैसे - ईआरएसी
पिछले १०-१५ साल से शिक्षा के क्षेत्र में गतिविधि आधारित शिक्षण की बात जोर - शोर से हो रही है. सबके लिए शिक्षा कानून के बाद इस तरह की चर्चाओं ने और जोर पकड़ा है. फार्मूले की तरह ईआरएसी भी लोंगो की जुबान पर रटने लगा है. कही -कही तो प्रशिक्षणों में ऐसी चर्चाएँ भी होने लगी हैं कि - ईआरएसी हुआ कि नही ? आखिर क्या है ईआरएसी ?
क्या यह शिक्षा में कोई नयी शब्दावली मात्र है या कि इसके पीछे कक्षा में हो सकने लायक काम का कोई रूप उभरता है ?
अनुभव रचना "ई"
अनुभव रचने का मतलब पूर्व ज्ञान या बच्चों का स्तर जांचना नही है. और न ही इसका सीमित मतलब है कि मजेदार तरीके से शुरुआत करना.
अनुभव रचने से आशय है कि बच्चों के लिए इस प्रकार की परिस्थितिया / माहौल तैयार करना कि वे -
अपनी क्षमता अनुसार सोच सकें,
सोचते हुए सीखने की दिशा में कुछ कर सकें
और अपने किये के आधार निष्कर्ष निकल सकें
और आखिर में अपने सीखने के बारे में सोच सकें
हाँ, इस दौरान कुछ ध्यान रखने की बातें हैं -
रचे जा रहे अनुभव में सभी को अपने स्तर, क्षमता अनुसार जुड़ने का मौका हो
सभी के लिए रोचकता और चुनौती हो
सीखने के लक्ष्यों से जुडाव हो
क्रमश: उच्च मानसिक कौशलो की और जाने वाला हो
(क, न, और म से बनने वाले अधिकतम शब्दों की लिस्टिंग करना : ५ -१० मिनट )
चिंतन कराना "आर"
चिंतन कराने का मतलब है बच्चे रचे गये अनुभव के बारे में सोचें ?
बच्चो ने शब्दों की लिस्ट बना ली. अब क्या करें ? उनसे बात की जा सकती है -
कितने शब्द बना पाए - दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चर वर्ण वाले, ५ वर्ण वाले.... ?
पहले किस तरह के शब्द मन में आये ?
शब्दों को लिखते समय क्या- क्या सोचा ?
मन में शब्द नही आ रहे थे क्या किया ?
शब्द बनाने के बारे में क्या पता चला ?
अनुप्रयोग कराना "ए"
यह काम छोटे समूह में ठीक होता है. बच्चे खुद करें, कुछ प्रकार के निष्कर्ष की और बढ़ें. पैटर्न पहचाने. आगे करते रहें -
अपने ग्रुप में खोजें - चीजों के नाम : संज्ञाएँ
गुण या रंग या स्वाद बताने वाले शब्द : विशेषण
कुछ होने या करने की स्थिति बताने वाले शब्द : क्रियाएं
१ संज्ञा, १ विशेषण और १ क्रिया शब्द चुनकर वाक्य बनाना, पैराग्राफ लिखना
पैराग्राफ का शीर्षक देना
पैराग्राफ पर आधारित सवाल बनाना
ग्रुप में बदलकर सवालों के उत्तर देना
कुछ शब्द चुनकर कहानी बनाना और कहानी के साथ भी उपर के सारे काम
इसके आलावा और क्या ? किस तरह के अनुप्रयोग ?
किचेन के चीजों की लिस्टिंग और उनके साथ यही काम
बैग की चीजें
दुकान /बाजार की चीजें
स्कूल / कक्षा की चीजें
अपने नाम के पहले अक्षर से शब्दों की लिस्ट बनाना
समेटना "सी"
बच्चे सीखने के लक्ष्यों की ओर सोचें. निष्कर्ष निकालें -
क्या - क्या किया ?
कब कब क्या क्या सोचना पड़ा, बदलना पड़ा ?
शीर्षक के बारें में क्या सोचा ?
सवाल बनाते समय ?
यही सवाल क्यों ?
सवालों के उत्तर के बारें में भी सोचा तो क्या और कैसे ?
पैराग्राफ में वाक्यों के बीच लिंक कैसे सोचा ?
और किस प्रकार के शब्द संज्ञा होतें हैं ?
विशेषणों के उलटे अर्थ वाले विशेषण क्या ?
अलग- अलग समय दर्शाने वाले क्रिया शब्दों का क्या रूप होगा ?
आपके मन में ऐसे कोई ठोस उदहारण आ रहे हों तो जरूर लिखें !!
मेहनती नहीं, स्मार्ट बनिए !
जब भी शिक्षकों का प्रशिस्क्षण किया जाता है, उन्हें तरह-तरह की घिसी-पिटी बातें बताई जाती हैं. 'आप देश का भविष्य हैं, बहुत ज़िम्मेदारी है आपके कन्धों पर, जाइए जा कर खूब मेहनत करिए.' है न? सुनाया जाता है कि नहीं? और बार-बार सुन कर कान पक चुके हैं कि नहीं?
दरअसल यह बड़ा मासूम सा विचार है - जैसे कि केवल मेहनत करने से सब कुछ हो जाता है. नहीं भैय्या, दिमाग लगाना पड़ता है, दिमाग! जिन लोगों का काम केवल मेहनत का ही माना जाता है, वे लोग अपना दिमाग लगा कर ही ठीक से काम कर सकते हैं -- जैसे कि ट्रक से सामान उतारने वाले लेबरर, खेत में काम करता किसान, गड्ढा खोदने या सिर पर मलबा ढोने वाले लोग. अगर वे बिना सोचे-समझे अपना काम करें तो उन्हें चोट लग सकती है, नुकसान हो सकता है, फटकार लग सकती है.... तो शिक्षक के मामले में तो ये बात कहीं और ज्यादा लागू होगी!
स्मार्ट शिक्षक कक्षा में बच्चों की भूमिका बहुत अधिक बढाते हैं - और केवल साफ़-सफाई और रख-रखाव के मामले में ही नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में. उदहारण के लिए चौथी कक्षा की शिक्षिका ने बच्चों से कहा,"जानते हो इस कहानी में एक दिन जब सिंह सो कर उठा, तो उसके सिर पर बाल ही नहीं थे. फिर उसने क्या किया अपने बाल वापिस पाने के लिए? पढो और पता करो!'
जब बच्चे पढने लगे तो वह उन बच्चों के साथ बैठ गयी जो कि पीछे छूटने के खतरे में थे. थोड़े समय के बाद उसने सबसे कहा, 'पढ़ कर जो शब्द समझ में नहीं आते हैं, उन पर गोला लगाओ. फिर अपने पड़ोसी से पूछो.' जब सबने यह काम कर लिया तो उसने समूह को कहा कि एक दूसरे से गोले लगे शब्दों के अर्थ पता करो. जो तुम लोग नहीं कर पाओगे, वे शब्दों को में बता दूँगी.'
आप सोच सकते होंगे कि इसके बाद उसने क्या किया होगा. पूरे समय इस शिक्षिका का हरेक बच्चा काम पर लगा रहा, सीखता रहा, दूसरों को सिखाता रहा, और वह खुद बहुत ही रेलाक्स्ड रही!
क्या हम भी इस तरह थोड़े आलसी और स्मार्ट बन सकते हैं?
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